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लेखनी कहानी प्रतियोगिता "उड़ि उड़ि जाय" -10-Jan-2022

उड़ि उड़ि जाये 


"सुनो, सात बज गये । अब तो उठो ना" । क्षमा ने अभि के बालों में हाथ फिराते हुए बड़े प्रेम से कहा । "उं हुं । सोने दो ना । आज तो इतवार है । सात दिनों में तो एक बार ही आता है ये रविवार । बाकी दिनों में तो भागमभाग लगी रहती है । कम से कम आज के दिन तो भरपूर आनंद लेने दो ना । ऐसा करो तुम भी मेरे साथ ही इस रजाई में आ जाओ " । अभि ने क्षमा को अपनी ओर खींच लिया । क्षमा इसके लिए तैयार नहीं थी इसलिए धड़ाम से अभि के ऊपर आ गिरी । अभि ने उसे बांहों में कसते हुये अपने प्यार की निशानी उसके होठों पर अंकित कर दी । 

"हटो ना, जब देखो तब ? अभी मम्मी आ जायेंगी तो क्या कहेंगी ? कुछ तो लिहाज रखा करो । घर है, ये कोई होटल नहीं है" । क्षमा ने कृत्रिम रोष दिखाते हुए थोड़ी तेज आवाज में कहा । 

"क्षमा, बेटा क्या हुआ" ? किचन से मम्मी की आवाज आई । 

"मैंने कहा था ना कि मम्मी आ सकती हैं । पर जनाब मानते कहाँ हैं ? अब मम्मी को आप ही जवाब देना । मैं तो चली" । क्षमा हाथ छुड़ाकर जाने लगी । 

"अभि तंग कर रहा है क्या ? क्यों अभि, सुबह सुबह नाश्ते में डांट वाली डिश खानी है क्या तुझे" ? मम्मी की तेज आवाज आई । 
"कुछ नहीं हुआ मम्मी जी । चलते चलते अचानक ठोकर लग गई थी । अब ठीक है" । क्षमा जोर से सासू मॉम को सुनाते हुए बोली । फैले हुये रायते को समेटना भी था ।

"अब चुपचाप खड़े हो जाओ नहीं तो मम्मी जी बहुत तेज डांटेगी। फिर मैं भी बचा नहीं पाऊंगी, हां" । क्षमा अभि से फुसफुसा कर बोली । 
"ठीक है, ठीक है । दोनों सास बहू एक होकर घर में "नारीवाद" की जड़ें जमा रहे हो । जमा लो । एक दिन इसे उखाडकर नहीं फेंक दिया तो मेरा नाम भी अभि नहीं" ! 
इस बात पर क्षमा को बहुत जोर से हंसी आ गयी । वह अभि को अंगूठा दिखाकर चिढ़ाते हुए बोली
"घर में हमारा राज है । हमारा हुकुम चलता है । इसलिए सावधान, खबरदार । जरा सी भी गलती नहीं होनी चाहिए महारानी की खिदमत में , नहीं तो राजमाता के सामने पेशी भुगतनी पड़ेगी" । 

उधर किचन से आवाज आई "दोनों खुसुर फुसुर क्या लग रहे हो ? अभी पेट नहीं भरा क्या ? चुपचाप यहां आ जाओ बिस्तर छोड़कर । नाश्ता तैयार हो गया है" । 

मां का आदेश टालने की हिम्मत तो पापा में भी नहीं थी । अब अभि के पास कोई चारा बचा नहीं था । बिस्तर छोडकर फ्रैश होने चला गया था अभि । ब्रश करके नाश्ते के लिए वह डाइनिंग टेबल पर आ गया । 

अभि के पापा पहले से ही तैयार होकर बैठे हुए थे वहां । क्षमा चाय तैयार करने लगी । अभि को सुबह सुबह एफ एम चैनल बहुत पसंद था इसलिए उसने "रेडियो मिर्ची" लगा दिया। उस पर गाना बज रहा था 
"उड़ि उड़ि जाय, उड़ि उड़ि जाय
दिल की पतंग हाय, उड़ि उड़ि जाय" । 
मस्त गाना था । अभि का पसंदीदा । वह भी मस्ती के मूड में चल रहा था । एक डेढ़ महीने पहले ही तो उसकी शादी हुई थी । अभी तक हनीमून की खुमारी भी नहीं उतरी थी उसकी । इसलिए जब भी मौका मिलता, क्षमा को छेड़ता रहता था अभि । 

जब यह गाना बज रहा था तो अचानक अभि को एक प्लान सूझा । दिल की पतंग तो बहुत दिनों से उड़ रही है अब कागज की पतंग भी उड़ा ली जाये । क्यों क्या खयाल है ? उसने पापा से पूछा । 
पापा को तो जैसे मुंह मांगी मुराद मिल गई । पापा को पतंग उड़ाना नहीं आता था मगर पतंगों को उड़ते हुए देखने में बड़ा मजा आता था उन्हें । उन्होंने तुरंत कहा "मकर संक्रांति को उड़ाते हैं पतंग । क्यों ठीक है ना" ? 
अभि को तो डबल खुशी मिल गई । दिल की पतंग क्षमा उड़ा रही थी और कागज की पतंग वह उड़ायेगा । मजा आ जायेगा । व्हाइट एन आईडिया सर जी ? 

वह तुरंत क्षमा को बताने रसोई में गया 
"क्षमा, इस बार मकर संक्रांति को पतंग उड़ायेंगे । बहुत मजा आयेगा । आसमान पतंगों से पट जाएगा । लाल, नीली, पीली, गुलाबी , तरह तरह की पतंगे छायेंगी आसमान पर । तुम चरखी पकड़ना और मैं पतंग उड़ाऊंगा । तुम्हें चरखी पकड़ना तो आता है ना" ? 
क्षमा बुरा सा मुंह बनाकर इंकार की मुद्रा में गर्दन हिलाकर बोली "हमारे यहां कोई पतंग नहीं उड़ाता है ना , इसलिए हमारा कभी काम ही नहीं पड़ा पतंगों और डोर से " । 
"कोई बात नहीं । हम सब सिखा देंगे। तुम भी उड़ाना । मम्मी भी उड़ायेंगी । क्यों मम्मी उड़ायेंगी ना" ? 
"क्यों नहीं । जरूर उड़ाऊंगी । क्षमा से भी उड़वाऊंगी । क्यों क्षमा , उड़ायेगी ना" ? 
क्षमा को बहुत शौक था पतंग उड़ाने का मगर कभी मौका ही नहीं मिला । अब मिल रहा है तो वह इस मौके को हाथ से जाने देना नहीं चाहती थी । इसलिए तपाक से बोली "हां, मैं भी उड़ाऊंगी और तुम्हारी पतंग काटूंगी "। कहते कहते हंस पड़ी थी क्षमा । शर्म से उसके गाल लाल हो गये थे । और मकर संक्रांति पर पतंगबाजी का कार्यक्रम बन गया । 

मेहमानों की सूची बनाई गयी । भोजन क्या बनेगा , इस पर मैराथन बैठक हुई । अंत में चूरमा बाटी और दाल बनाना तय हुआ । यही एक ऐसी डाइट है जिसे पहले से बनाकर रखा जा सकता है और सब लोग साथ में बैठकर खा सकते हैं । बाकी डिशेज में ऐसा नहीं है । राजस्थान में बहुत पसंद है यह डिश । सर्दियों में पुए पकौड़े भी खूब बनते हैं लेकिन उन्हें गरम गरम खाने में ही आनंद आता है । इसलिए चूरमा बाटी और दाल बनना तय हो गया । चूरमा भी तरह तरह का बनता है । चूंकि सर्दी जोरों की पड़ रही थी इसलिए बाजरे का चूरमा सही रहेगा, मम्मी ने कहा था । मम्मी की बात कौन टाल सकता है ?

रसोई में क्षमा और मम्मी दोनों जुट गए । अभि मेहमानों की आवभगत में जुट गया । ऊपर छत पर "मजमा" लगा लिया । अभि ने डैक लगा लिया था जिस पर गाना बजने लगा 
चली चली रे पतंग मेरी चली रे 
चली बादलों के पार होके डोर पे सवार 
सारी दुनिया ये देख देख जली रे 
चली चली रे पतंग मेरी चली रे 

इधर डैक पर गाना चल रहा था उधर अभि पतंग उड़ा रहा था । चरखी पापा ने पकड़ रखी थी और आसमान रंग बिरंगी पतंगों से अटा पड़ा था । पूरे वातावरण में "वो काटा , वो मारा" का शोरगुल हो रहा था । रसोई में क्षमा और मम्मी दोनों अपनी कुशलता दिखलाने के लिए मनोयोग से लगी हुईं थी । मेहमान लोग भी पतंगबाजी का मजा ले रहे थे । 

अभि को राजस्थानी गीत बहुत पसंद थे । उसने एक मारवाड़ी गीत चला दिया । लड़के और लड़कियों के बीच पतंग उड़ाने को लेकर छेड़छाड़ से संबंधित गीत था । लड़की कहती है
पतंग उड़ा रे छोरा पतंग उड़ा 
हिवड़ा पे मत ना तीर चला 

फिर लड़का जवाब में कहता है
पेंच लड़ा ऐ गोरी पेंच लड़ा 
बढ़ बढ़ के ना बात बना । 

अभि को लगता है कि यह गीत उस पर और क्षमा पर बनाया गया है । दोनों के नैनों के पेच जो लड़ रहे थे उनके ।जब तक भोजन बनकर तैयार हुआ तब तक बीस पतंग काट चुका था अभि । उसकी भी सात आठ पतंग कट चुकी थी । बीच बीच में एक दो बार पापा को भी पकड़ा दी डोरी । पापा को भी आनंद आ रहा था ।

भोजन तैयार हो चुका था । सबने खाना खाया और ऊपर छत पर पतंगबाजी के लिए आ गये । 

अभि ने पहले मां से एक पतंग उड़वायी । वह थोड़ी ही दूर गयी कि अचानक नीचे गिर पड़ी । हमारी जिंदगी में भी अचानक ऐसे कई अवसर आते हैं जब बना बनाया काम बिगड़ जाता है । ऐसे समय में हमें हौंसला रखने की आवश्यकता होती है । अभि ने दूसरी पतंग उड़ाई और फिर मम्मी को पकड़ा दी । इतने में किसी ने पेंच लड़ा दिये और पतंग कट गई । ये पतंग भी जिंदगी का एक पाठ पढ़ा गई । लोग आपकी पतंग को काटने की फिराक में लगे हुए हैं, उनसे बचकर चलो । खेल खेल में ही पतंग ये गूढ ज्ञान सिखा देती है । 

अब बारी आई क्षमा की । पहले तो चरखी पकड़ाई फिर पतंग उड़ानी सिखाई । ये भी जीवन का गूढ ज्ञान है कि जो कुछ तुम जानते हो उसे आगे बढ़ाओ । क्षमा और अभि की पतंग आसमान में ऊंची और ऊंची उड़ी जा रही थी और दोनों जने प्रेम की दुनिया में उड़े जा रहे थे । 

हरिशंकर गोयल "हरि"
10.1.22 

# कहानी प्रतियोगिता हेतु 

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10 Comments

kashish

03-Feb-2023 02:07 PM

osm post sir

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Seema Priyadarshini sahay

11-Jan-2022 06:28 PM

बहुत सुंदर लिखा सरजी आपने

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Hari Shanker Goyal "Hari"

11-Jan-2022 07:59 PM

धन्यवाद मैम

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Arjun kumar

10-Jan-2022 11:54 AM

Good

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Hari Shanker Goyal "Hari"

10-Jan-2022 11:56 AM

धन्यवाद जी

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